समलैंगिक विवाह: सुप्रीम कोर्ट महत्वपूर्ण फैसला समलैंगिक विवाह को कानूनी वैधता नहीं।

समलैंगिक विवाह इस मामले की सुनवाई ने भारतीय समाज में महत्वपूर्ण चर्चाओं को बढ़ा दिया है।

समलैंगिक विवाह के अधिकारों को लेकर महत्वपूर्ण फैसले की आशा की जा रही है। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय से समलैंगिक समुदाय को अपने अधिकारों की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण कदम मिला है, जिससे समाज में समरसता और समानता की दिशा में अग्रसर होने की संभावना है।

यह निर्णय न सिर्फ भारतीय समाज में समलैंगिकता के प्रति सहमति की दिशा में एक कदम है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अध्यक्षता वाली इस बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस. रविंद्र भट, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल थे।

18 अप्रैल से, सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक विवाह मामले की सुनवाई शुरु हुई थी। इस दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि उनकी शक्ति सीमित है और वे नहीं कह सकते कि संसद किस प्रकार की प्रतिक्रिया देगी, इस आशा के बिना कि वे संविधानिक घोषणा करें। तुषार मेहता ने कहा कि एक और दिक्कत है कि अदालत विषमलैंगिक विवाहित जोड़ों और समान-लिंग वाले जोड़ों पर अलग तरह से लागू होने वाला कानून नहीं बना सकती।

दुनिया भर में केवल 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध बनाया है, जिनमें से 24 देशों ने इसे विधायी प्रक्रिया के माध्यम से, जबकि 9 ने विधायिका और न्यायपालिका की मिश्रित प्रक्रिया के माध्यम से किया। वहीं, दक्षिण अफ्रीका अकेला देश है जहां इस प्रकार के समलैंगिक विवाह को न्यायपालिका द्वारा वैध किया गया है। केंद्र के मुताबिक अमेरिका और ब्राजील प्रमुख देश हैं जहां मिश्रित प्रक्रिया को अपनाया गया था।

तुषार मेहता के द्वारा की गई इस दलील से यह सुझाव आता है कि समलैंगिक संबंधों की कानूनी मान्यता देने के संदर्भ में सरकार को बहुत सावधानी और विचारशीलता से काम करना होगा। यह एक व्यापक सामाजिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य से महत्वपूर्ण चुनौती हो सकती है जिसके परिणामस्वरूप समलैंगिक संबंधों की स्थिति और कानूनी दृष्टिकोण में बदलाव हो सकता है।

समलैंगिक व्यक्तियों की पहचान उनके अंदर की भावनाओं और आत्म-पहचान के साथ जुड़ी होती है, जिसमें वे अपने लैंगिक भावनाओं और प्राकृतिकता के साथ कैसे मानते हैं। समलैंगिकता विभिन्न प्रकार की हो सकती है।

समलैंगिकता के बारे में जानकारी और सहयोग का उपयोग करके, समाज में समलैंगिक समुदाय के सदस्यों को अपनी पहचान और अधिक समझाया और समर्थित किया जा सकता है। समलैंगिक समुदाय के सदस्य अकेले नहीं होते और उन्हें समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए, जैसे कि अन्य लोगों की तरह।

समलैंगिक विवाह

आखीर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377 क्या है ?

भारतीय दण्ड संहिता की धारा 377, जिसे “जाति या लैंगिक प्रवृत्ति के साथ दो वयस्क व्यक्तियों के बीच अनैतिक संबंध” के रूप में जाना जाता है, कानूनी दिशा में महत्वपूर्ण है। इस धारा के तहत, सामलैंगिक संबंध अवैध माने जाते थे.

हालांकि, 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को असमयिक तौर पर अवैध घोषित किया और इसका निष्कर्ष दिया कि सभी व्यक्तियों को समलैंगिक संबंध बनाने का अधिकार है और वे समाज में समानता का आनंद उठा सकते हैं। इससे समलैंगिक समुदाय को न्याय मिला और भारत में समलैंगिकता के समरसता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ा।

CJI चंद्रचूड़ के समलैंगिक विवाह फैसले में महत्वपूर्ण बात AQ

इस फैसले के दौरान सीजेआई चंद्रचूड़ ने सरकार की तर्क को खारिज किया कि समलैंगिकता केवल शहरी अवधारणा नहीं है। उन्होंने कहा कि हमारे साहित्य में इसका पुराना इतिहास है, और इसे केवल एलीट शहरी लोगों के साथ जोड़ना गलत होगा। शहर में बहुत सारे गरीब लोग भी रहते हैं।

लोग यह भी जानना चाहते हैं।

Q. समलैंगिक विवाह का मतलब क्या है?

यह दर्शाता है कि किसी पुरुष को सिर्फ स्त्री के साथ ही नहीं, बल्कि पुरुषों में भी दिलचस्पी हो सकती है। उसी तरह, महिला किसी पुरुष के साथ ही नहीं, बल्कि किसी अन्य महिला की ओर भी आकर्षित हो सकती है। इससे दोनों के बीच संबंध भी बन सकते हैं।

Q. समलैंगिक कितने प्रकार के होते हैं?

समलैंगिकता इसके तहत तीन प्रकार के भावनात्मक और यौन आकर्षण को व्यक्त किया जा सकता है:

1. विषमलैंगिकता (हेटरोसेक्षुअल): यह उस स्थिति को दर्शाता है जब किसी व्यक्ति को सिर्फ दूसरे लिंग के व्यक्तियों में भावनात्मक, रोमांटिक, या यौन आकर्षण होता है.

2. समलैंगिकता (होमोसेक्षुअल): यह व्यक्ति की स्वयं की लिंग के व्यक्तियों के साथ होने वाली भावनात्मक, रोमांटिक, या यौन आकर्षण को दर्शाता है, जैसे कि गे (आदमी से प्रेम करने वाले) या लेस्बियन (महिला से प्रेम करने वाली).

3. उभयलिंगी (बाइसेक्षुअल): इसमें व्यक्ति को दोनों पुरुषों और महिलाओं के साथ होने वाली भावनात्मक, रोमांटिक, या यौन आकर्षण होता है.

Q. भारत में कितने समलैंगिक हैं?

यह बात दिखाती है कि समलैंगिक समुदाय के सदस्यों के स्वास्थ्य मुद्दों को उचित ध्यान देने की आवश्यकता है, खासकर जब यह संक्रमण जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के साथ जुड़ी होती है। सरकार को इस प्रशासनिक और स्वास्थ्य समस्या को समझने और समय रहित उपाय ढूंढने में मदद करने के लिए कदम उठाने की आवश्यकता हो सकती है।

इस संकट के समाधान के लिए शिक्षा, जागरूकता, और सामाजिक समर्थन कामयाब समलैंगिक समुदाय के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, जो समाज में समानाधिकार और स्वास्थ्य सुधारने की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।

हाल ही में केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि देश में 25 लाख पुरुष समलैंगिक हैं, जिनमें से सात प्रतिशत से ज्यादा समलैंगिक एचआईवी संक्रमित हैं।

Q. कौन सा देश समलैंगिक विवाह को वैध घोषित करने वाला दुनिया का पहला देश है?

दुनिया के 34 देशों ने समलैंगिक विवाह को कानूनन मान्यता दिया है. पहला देश जिसने वैवाहिक समानता को मान्यता देने का कदम उठाया था, वह नीदरलैंड्स था. उनकी संसद ने सन् 2000 में ऐतिहासिक विधेयक को पास किया था, जिससे वही लैंडमार्क स्थापित हुआ कि समलैंगिक विवाह को वैध माना गया।

इसके बाद से, एक कई अन्य देशों ने भी समलैंगिक विवाह को कानूनी रूप से मान्यता दी है, जो समलैंगिक समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा और सामाजिक समानता को बढ़ावा देता है।

Q. गे कौन सी बीमारी है?

समलैंगिकता कोई बीमारी नहीं है, जिसके लिए मनोवैज्ञानिक उपचार की जरूरत हो, हम इसे कभी मानसिक समस्या नहीं मानते. यह एक यौन प्रवृत्ति है जो पूरी तरह जैविक है। यह विपरीत लिंगी लोगों के साथ संबंधों की तरह ही मानवीय यौन प्रवृत्ति का एक स्वरूप है. समलैंगिकता को समझने में महत्वपूर्ण है कि यह एक नैतिक या आधार्भूत मूल्यों का परिचय नहीं करता है। यह किसी की व्यक्तिगत यौन प्राथमिकताओं और भावनाओं का परिणाम होता है, जिसे उनके अंदरीकृत स्वाभाविकता ने निर्धारित किया है।

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